Sunday, August 12, 2007

ब्लॉग की भाषा

औपचारिकताएं भाषा को सीमा में बांध देती हैं। अखबार, टीवी, रेडियो और दूसरे जनमाध्यमों की भाषा हालांकि बोलचाल तक पहुंच चुकी है, लेकिन उससे वह खिलंदड़पन गायब है। खिलंदड़पन के माने फूहड़ता से नहीं, भाषा की मासूमियत से है। शायद कुछ-कुछ वैसा ही जैसे एक मासूम बच्चे और सयाने आदमी की हंसी का फर्क। हम जैसे हैं ठेठ वही। ब्लॉग की भाषा में यह स्वस्फूर्तता नजर आती है। यहां मुंबइया ठेठपन है, तो भोजपुरी तड़का भी। जैसे हम हैं, जैसा बोलते-बरतते हैं खालिस वही। यही ब्लॉग्स की लोकप्रियता का कारण भी है।
ब्लॉग की भाषा का यह देसीपन और बेलाग शैली हिंदी को वह ताकत दे रही है, जिसकी उसे जरूरत थी। हिंदी ब्लॉग्स पर आप एक नजर डालेंगे, तो विभिन्न भाषा-बोलियों के बेशुमार शब्द मिलेंगे। भोजपुरी, गढ़वाली, कुमांउनी, मैथिली, डोगरी आदि के शब्दों का चिट्ठाकार जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। जनसंचार माध्यमों का जैसे-जैसे स्थानीयकरण हो रहा है, वैसे-वैसे हिंदी का प्रसार तो हो रहा है। लेकिन यह हमारी भाषाओं और बोलियों पर भारी पड़ रहा है। गौर से देखें तो, अंगरेजी भाषा के साम्राज्यवाद की यह पूरी चेन सी नजर आती है। आप अपने आसपास के ही किसी कस्बे को ले लीजिए। आप देखेंगे कि एक दौर में वहां अच्छी-खासी तादाद में मातृभाषा बोली जाती थी। हिंदी के प्रसार के साथ अगली पीढ़ी के लोग हिंदीभाषी हो गए। और उसके बाद जो नई पीढी़ आई, वो अंगरेजी बोलती-पढ़ती है। मतलब पहले आपकी मातृभाषा खत्म हुई और फिर हिंदी। हमारे अभरते मेट्रो शहरों की अधकचरी भाषा इसी की परिणति है। तो फिर हिंदी के प्रसार पर इतने फूलने की क्या जरूरत है। क्या आपको नहीं लगता है कि हिंदी का फैलाव अंगरेजी के लिए जमीन तैयार कर रहा है ? इस माहौल में ब्लॉग उम्मीद बांधते हैं। हालांकि अभी यह कुछ ही हाथों तक सीमित है, लेकिन आने वाले वक्त में अखबार, रेडियो, टीवी, इंटरनेट के बाद यह पांचवे मीडिया का रूप में उभरेगा।

6 comments:

नारद संदेश said...

राकेश जी
नमस्कार
आपका ब्लॉग पढ़ा कर अच्छा लगा।
आपका
बृजेश श्रीवास्तव

Pratik Pandey said...

आपका ब्लॉग बढ़िया लगा। मैं भी आगरा में ही हूँ। आपसे मुलाक़ात का इच्छुक हूँ। "कब" - ये आप तय करें। :)

Udan Tashtari said...

सच है. जल्द ही होगा.

ePandit said...

"भोजपुरी, गढ़वाली, कुमांउनी, मैथिली, डोगरी आदि के ढेरों ब्लॉग बनाकर लोग जमकर लिख रहे हैं।"

गढ़वाली और कुमांउनी के कौन से ब्लॉग हैं, क्या पता बता सकते हैं?

बात बेबात said...

शीरीष जी, मेरा आशय ब्लॉग्स में गढ़वाली, कुमाउंनी व डोगरी के शब्दों का जमकर इस्तेमाल से था। मैने अपने लेख में संशोधन कर दिया है। शीरीष जी, अभी हालांकि ठेठ गढ़वाली या कुमाउंनी ब्लॉग तो नहीं लिखे जा रहे, लेकिन इस दिशा में कुछ ब्लागर्स धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे हैं। बुरांस के माध्यम से मैंने भी छोटी से पहल की है। आपके प्रश्नात्मक सुझाव के लिए धन्यवाद।

Anonymous said...

सच यही है कि मेरे हिन्दी ब्लॉग की शुरुआत के पीछे कौतूहल ही मुख्य भावना थी
आज कल हिंदी मे ब्लोग्गिंग करने के लिए एक अच्छा मौक़ा हे
quillpad.in/hindiसे हिंदी मे आसान से लिख सकते है