Wednesday, May 23, 2007

टेलिविजन का बदला न विजन


यमुना पुश्ते में आग से ढाई सौ झोंपड़िया राख। दो घंटे में... सब कुछ खत्म। हमारे खबरिया चैनलों पर भी महज दो मिनट में सब कुछ खत्म। करीब तीन दशक पहले 1970-75 के बीच लिखी रघुवीर सहाय की यह कविता आज भी कितना कुछ कहती है।

मैं संपन्न आदमी हूं, है मेरे घर में टेलिविजन
दिल्ली और बंबई दोनों के बतलाता है फैशन
कभी-कभी वह लोकनर्तकों की तसवीर दिखाता है
पर यह नहीं बताता है उनसे मेरा क्या नाता है
हर इतवार दिखाता है वह बंबइया पैसे का खेल
गुंडागर्दी औ नामर्दी का जिसमें होता है मेल
कभी-कभी वह दिखला देता है भूखा-नंगा इंसान
उसके ऊपर बजा दिया करता है सारंगी की तान
कल जब घर को लौट रहा था देखा उलट गई बस
सोचा मेरा बच्चा इसमें आता रहा न हो वापस
टेलिविजन ने खबर सुनाई पैंतीस घायल एक मरा
खाली बस दिखला दी, खाली दिखा नहीं कोई चेहरा
वह चेहरा जो जिया या मरा व्याकुल जिसके लिए हिया
उसके लिए समाचारों के बाद समय ही नहीं दिया
तब से मैंने समझ लिया है अकाशवाणी में बनठन
बैठे हैं जो खबरोंवाले वे सब हैं जन के दुश्मन
उनको शक था दिखला देते अगर कहीं छत्तीस इंसान
साधारण जन अपने-अपने लड़के को लेता पहचान
ऐसी दुर्भावना लिए है जन के प्रति जो टेलिविजन
नाम दूरदर्शन है उसका काम किंतु है दुर्दशन

Wednesday, May 2, 2007

खबर का असर

...साहब पुलिस वाले सारी मछलियां उठा ले गए। कल तो सबकुछ ठीकठाक था। पता नहीं रात ही रात...। उसके चेहरे पर बेचारगी थी और ओठों पर मुस्कराहट। मगर चिपकी हुई। दरअसल यह एक खबर का असर था। जिसका असर उसकी रोजी-रोटी पर भी पड़ा था। शहर में बिना लाइसेंस के मांस बिकने की खबर छपने से पुलिस सुबह-सवेरे जाग उठी थी। करीब तीन लाख रुपये का मांस जब्त कर लिया गया था। खबर का यह दोतरफा असर है। जिसका दूसरा पहलू अक्सर खबर नहीं बनता। पुलिस ने माल का कैसे बंदरबांट किया और जिनका माल छीना गया, उनकी रात कैसे कटी, कर्जे के बोझ में वह कितने इंच और धंसा। यह खबर नहीं है। आखिर यह खबर क्यों नहीं बनती ? क्योंकि यह डाउन मार्केट है। डाउन मार्केट बोले तो, फटी जेब वाले की खबर। आपका एलीट पाठक यह नहीं पढ़ना चाहता। खबर उसी के लिए है, जो मांस खाकर अपने राने मोटी करता है। वह आपका पाठक है, मालदार पाठक। इसलिए हमारे लिए खास है। हमारी सेहत उससे जुड़ी हुई है। खबरदार उसकी सेहत से खिलवाड़ करने की कोशिश की तो...।
अब टीवी चैनलों के क्राइम शो को देखिए। यहां डाउन मार्केट खबर (माफ कीजिए) और क्राइम की ऐसी केमेस्ट्री है कि वही माल अपमार्केट हो जाता है। बुधई की बेटी को रामखिलावन कैसे भगा ले गया, नामनरेश के भाई की उसके भाई ने ही कैसे गला काट डाला सेलेबल आइटम है। एंकर की रूह कंपाती आवाज में यह हॉरर शो रामसे ब्रदर्स की फिल्मों सा मजा देते हैं। क्या कभी इसकी पड़ताल हुई है, कि जो अधकचरी खबर आपने सारी रात अपने चैनल पर चलाई उससे दूसरे की जिंदगी पर क्या असर पड़ा। डीपीएस एसएमएस कांड मामले में तो, शर्मसार बाप ने खुदकुशी कर ली थी। अवैध संबंधों के कारण हुई साहनी साहब के बेटे की खबर क्राइम शो में नहीं चलती। क्यों ? क्योंकि पहला वह आपका दर्शक है, दूसरा वह आपके चैनल के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। ...तो असरदार खबर लीखिए जनाब।