सनसनाता हुआ गोल और सीटियों व तालियों से गूंजता हॉल। यह गोल न शाहरुख खान का है, न पाकिस्तान जैसे 'दुश्मन' देश के खिलाफ। फिल्मी दुनिया में अभी-अभी पांव धरे किसी अनजान सी बाला ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ ठोका है यह गोल। कौन कहता है कि देश में हॉकी के मुरीद नामुराद हो चुके हैं। शाहरुख खान और उनकी 16 'हीरोइनों' की टीम से लैस फिल्म 'चक दे इंडिया' देखिए। फिल्म में बस हॉकी बोलती है। सत्तर मिनट के खेल पर 150 मिनट की फिल्म। और यकीन मानिए खालिस 150 मिनट हॉकी के नाम। न ग्लैमर न उन्माद, बस हॉकी। वही हॉकी जिसको देखकर हम चैनल बदल देते हैं। वही हॉकी जिसके खिलाड़ियों की बात छोड़ दीजिए, कप्तान का नाम तक किसी को पता नहीं होता। हां, क्रिकेट का अगला कप्तान और कोच कौन होगा, यह गली के नुक्कड़ पर बैठा पानवाला भी आपको बता देगा। तो आखिर ऐसा क्यों हुआ कि हॉकी डाउन मार्केट मार्का खेल बनकर रह गई। क्या लोग वास्तव में हॉकी नहीं देखना चाहते। तो फिर हॉकी के एक गोल और क्रिकेट के खिलाफ कमेंट पर अपनी सीटों पर उछलते दर्शक, क्या है यह ? लोगों उन्माद हॉकी के मैदान तक पहुंचते-पहुंचते क्यों ठंडा हो जाता है। क्रिकेट के लिए आठ घंटे तक सीट पर जमा रहने वाला हॉकी को सत्तर मिनट क्यों नहीं दे सकता, इसकी वजहें तलाशनी होंगी।
खराब प्रदर्शन इसका कारण नहीं हो सकता। अगर ऐसा होता, तो विश्व कप में भारत के प्रदर्शन और मैच फिक्सिंग जैसे विवादों के बाद क्रिकेट का ग्राफ हॉकी से कहीं नीचे गिर जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कहीं खबरों तो कहीं खेलों के बारे में गोयबल्स टाइप डाउन मार्केट रट्टे से हकीकत कहीं इतर है। क्रिकेट ही नहीं हॉकी भी सर्कुलेशन और टीआरपी बढ़ाने का माद्दा रखती है। बशर्ते उसे जगह मिले। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म चले न चले, लेकिन अपनी हॉकी को बहुत कुछ दे जाएगी यह फिल्म। ...क्योंकि हॉकी में 'छक्के' नहीं होते।
खराब प्रदर्शन इसका कारण नहीं हो सकता। अगर ऐसा होता, तो विश्व कप में भारत के प्रदर्शन और मैच फिक्सिंग जैसे विवादों के बाद क्रिकेट का ग्राफ हॉकी से कहीं नीचे गिर जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कहीं खबरों तो कहीं खेलों के बारे में गोयबल्स टाइप डाउन मार्केट रट्टे से हकीकत कहीं इतर है। क्रिकेट ही नहीं हॉकी भी सर्कुलेशन और टीआरपी बढ़ाने का माद्दा रखती है। बशर्ते उसे जगह मिले। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म चले न चले, लेकिन अपनी हॉकी को बहुत कुछ दे जाएगी यह फिल्म। ...क्योंकि हॉकी में 'छक्के' नहीं होते।
5 comments:
nice to see your enthusiasm..
keep it up, friend..
यह फिल्म देख तो नहीं पाया पर देखना है।
अभी ढाई घंटे बाद का शो है, फिर लिखेंगे अपने ब्लॉग पर कि कैसी लगी फिल्म। :) कल इसी फिल्म के प्रीमियर के लिए लंदन पहुँचे शाहरूख को मैच के दौरान लाईव देखा सुनील गावस्कर के साथ। :)
चक दे इंडिया ने सचमुच खिलाडि़यों के साथ-साथ आम आदमी को भी प्रेरणा देने का काम किया है।
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