...साहब पुलिस वाले सारी मछलियां उठा ले गए। कल तो सबकुछ ठीकठाक था। पता नहीं रात ही रात...। उसके चेहरे पर बेचारगी थी और ओठों पर मुस्कराहट। मगर चिपकी हुई। दरअसल यह एक खबर का असर था। जिसका असर उसकी रोजी-रोटी पर भी पड़ा था। शहर में बिना लाइसेंस के मांस बिकने की खबर छपने से पुलिस सुबह-सवेरे जाग उठी थी। करीब तीन लाख रुपये का मांस जब्त कर लिया गया था। खबर का यह दोतरफा असर है। जिसका दूसरा पहलू अक्सर खबर नहीं बनता। पुलिस ने माल का कैसे बंदरबांट किया और जिनका माल छीना गया, उनकी रात कैसे कटी, कर्जे के बोझ में वह कितने इंच और धंसा। यह खबर नहीं है। आखिर यह खबर क्यों नहीं बनती ? क्योंकि यह डाउन मार्केट है। डाउन मार्केट बोले तो, फटी जेब वाले की खबर। आपका एलीट पाठक यह नहीं पढ़ना चाहता। खबर उसी के लिए है, जो मांस खाकर अपने राने मोटी करता है। वह आपका पाठक है, मालदार पाठक। इसलिए हमारे लिए खास है। हमारी सेहत उससे जुड़ी हुई है। खबरदार उसकी सेहत से खिलवाड़ करने की कोशिश की तो...।
अब टीवी चैनलों के क्राइम शो को देखिए। यहां डाउन मार्केट खबर (माफ कीजिए) और क्राइम की ऐसी केमेस्ट्री है कि वही माल अपमार्केट हो जाता है। बुधई की बेटी को रामखिलावन कैसे भगा ले गया, नामनरेश के भाई की उसके भाई ने ही कैसे गला काट डाला सेलेबल आइटम है। एंकर की रूह कंपाती आवाज में यह हॉरर शो रामसे ब्रदर्स की फिल्मों सा मजा देते हैं। क्या कभी इसकी पड़ताल हुई है, कि जो अधकचरी खबर आपने सारी रात अपने चैनल पर चलाई उससे दूसरे की जिंदगी पर क्या असर पड़ा। डीपीएस एसएमएस कांड मामले में तो, शर्मसार बाप ने खुदकुशी कर ली थी। अवैध संबंधों के कारण हुई साहनी साहब के बेटे की खबर क्राइम शो में नहीं चलती। क्यों ? क्योंकि पहला वह आपका दर्शक है, दूसरा वह आपके चैनल के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। ...तो असरदार खबर लीखिए जनाब।
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7 comments:
राकेश जी, यह तो हर समाचार के पीछे छुपा सच है क्योंकि समाचार क्या हुआ वह बताते हैं पर उसके पीछे छिपे मानव की भावनाओं को अक्सर अनदेखा कर देते हैं, विषेशकर अगर वह मानव गरीब ताकतविहीन हो. चिट्ठे के द्वारा यह मौका मिलता है हम सब को कि ऐसी अनदेखी कहानियों को भी लोगों के सामने प्रस्तुत कर सकें, हालाँकि उससे कुछ नहीं बदल पाते. करीब दो वरंष पहले दिल्ली की एक धोबी बस्ती में मुझे भी समाचारों के पीछे छुपे मानवों की कहानी जानने का मौका मिला था.
राकेश जी,
आप दिल्ली होते हुए आगरा जा पहुंचे हैं, अपन आगरा से दिल्ली आ पहुंचे हैं। वैसे,रास्ता हमारा भी अमर उजाला से होते हुए गुजरा।
वैसे,आगरा की बेडई-कचौड़ी को आप नहीं भूल सकते।
फौरन आजमाएं, आदत लग गई तो छूटेगी नहीं...गारंटी है हमारी-
पीयूष
दरअसल,आपके परिचय में आगरा देखते हुए हमने पूरी टिप्पणी आगरा पर कर डाली।
समाचार पर आपकी बात भी ठीक है
-पीयूष
बहुत बढ़िया । सुंदर लेख ।
साथी राकेश, ये सब तो हर अख़बार, हर चैनल में होता है...क्योंकि ख़बरें बिकती हैं जो ख़बरें बिकेंगी नहीं उसे बनिया अपने अख़बार में न तो छपने देगा और न ही चैनल पर चलने देगा...सब जगह अर्थ का खेल है....खबरें ले लो........यही तो करते हैं ना हम और आप...
आपने सही लिखा है।
aapne dil ki bat likh di.
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